काँची मठ के शंकराचार्यजी को हत्या
के झूठे आरोपों के तहत गिरफ्तार किया गया एवं मीडिया ने भी उनको कातिल ही प्रचारित
किया। जब उनको निर्दोष छोड़ा गया तो किसी मीडिया प्रतिष्ठान ने उन्हें कातिल कहने
के लिए कोई क्षमायाचना नहीं की।
सबसे खराब बात यह है कि धर्म-निरपेक्ष-हीनभावना के शिकार
अधिकांश हिन्दू जो भी मीडिया कहता है, उसे तुरंत सत्य मान
लेते हैं। कोई सबूत नहीं, कोई जाँच नहीं, कोई दोषी सिद्ध करना नहीं- अचानक सभी लोग जज बन जाते हैं क्योंकि मीडिया
और फिल्मों ने हमारे दिमागों में कूट-कूटकर भर रखा है कि अगर कोई हिन्दू संत है तो
वह अवश्य ही भ्रष्ट और विकृत है।
मीडिया सिर्फ उन्हें ही मूर्ख बना सकती
है जो पहले से ही मूर्ख है !!!
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