न्यायालयों में जजों की भारी कमी को देखते हुए
"मीडिया" को न्याय देने का काम
सौंपा गया लगता है... मीडिया में रोजाना ट्रायल, मीडिया
में ही सुनवाई, मीडिया ही आरोप तय
करके फांसी वगैरह जो भी सुनाना हो, सुना दे और मामला ख़त्म करे... शायद ऐसा
ही कुछ चाहते होंगे देश के बुद्धिजीवी(??)
जिस तरह से देश की मुख्य समस्याओं को
दरकिनार करते हुए समूचा मीडिया सिर्फ हिन्दू संतों के पीछे पड़ा हुआ है, उससे अब दुर्गन्ध उठने लगी है. जो लोग संत
आसाराम जी बापू के मामले में निरपेक्ष रूप से सोचते
होंगे अब वे भी इस "अनथक मीडिया ट्रायल" के चलते किसी गहरे
षडयंत्र की बू सूंघने लगे है !!
इन मीडियाई "दल्लों" द्वारा
चलाए जा रहे ऐसे "मीडिया ट्रायल" कभी भी "पवित्र परिवार के किसी
सदस्य" अथवा रिलायंस-अम्बानी के खिलाफ नहीं चलाए जाते...आखिर क्यूँ ??
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