कुप्रचार
के समय साथ ही साथ सुप्रचार होता है तो कुप्रचार का इतना प्रभाव नहीं हो सकता ।
शिष्य अगर निष्क्रिय रहकर सोचते रह जायें कि जो करेगा सो भरेगा...भगवान उनका नाश
करेंगे..'तो कुप्रचार करने वालों को खुल्ला
मैदान मिल जाता है।
जिन
संतों के पीछे सजग समाज होता है उन संतों के पीछे उठने वाले कुप्रचार के तूफ़ान
समय पाकर शांत हो जाते हैं और उनकी सत्प्रवृत्तियाँ प्रकाशमान हो उठती हैं ।
उदासीन और पलायनवादी मानसिकता का त्याग कर उत्साह और तत्परता क साथ अपने शिष्य धर्म में लग जाये ।
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